ग्राम श्री

ग्राम श्री

5.1 कवि परिचय

सुमित्रानंदन पंत

इनका जन्म उत्तरांचल के अल्मोड़ा जिले के कौसानी गाँव में सन 1900 में हुआ। आजादी के आंदोलन के दौरान महात्मा गांधी के आह्वान पर उन्होंने कॉलेज छोड़ दिया। पंत के कविता में प्रकृति और मनुष्य के अंतरंग संबंधों की पहचान है। सन 1977 में उनका देहांत हो गया।

प्रमुख कार्य

काव्य कृतियाँ - वीणा, ग्रंथि,गुंजन, ग्राम्या, पल्लव, युगांत, स्वर्ण किरण, स्वर्णधूलि, कला और बुढा चाँद, लोकायतन, चिदंबरा।

पुरस्कार - साहित्य अकादमी पुरस्कार, भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार, सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार।

5.2 पाठ का सार

इस कविता में कवियत्री ने गाँव में छायी हरियाली का दिल छू लेने वाला वर्णन किया है। यहाँ जाड़े के मौसम का अंत तथा वसंत ऋतू का आगमन का दृश्य प्रस्तुत किया गया है। खेतों में फैली दूर दूर तक फसलें और उनके ऊपर जब सूरज की किरणें पड़ती हैं तो कवियत्री को ऐसा प्रतीत होता है मनो किसी ने चांदी का जाल बिछा दिया हो। गेहूं और अरहर की सुनहरी बाली तथा पिली सरसों द्वारा फैला तैलीय सुगंध उन्हें बहुत मोहित करता है। खेतों में मटर के पौधे अपने बीजों को छिपाकर हंस रही हैं और रंग बिरंगी तितलियाँ फूलों के ऊपर मंडरा रही हैं जिसे देखकर ऐसा लगता है जैसे किसी ने रंगों की छठा बिखेरी दी हो। फलों के पकने का मौसम होने के कारण वृक्ष आम, अमरुद, जामुन तथा कटहल, आड़ू आदि से झुका पड़ा है। पालक, धनिया के पत्ते लहलहा रहे हैं, टमाटर मखमल की तरह लाल हो गए हैं तथा मिर्च हर-भरी थैली की तरह लग रही है। गंगा के तट पर पड़े बालू के टीले ऐसे लगते हैं मानो लम्बे-लम्बे सांप पड़े हों तथा तरबूजे की खेती भी मन को भा रही है। पास में बगुला अपनी अँगुलियों से अपने कलगी में कंघी कर रहा है तथा मगरमच्छ पानी में अलसाया सोया पड़ा है। कुल मिलाकर कवियत्री ने पुरे वातावरण का सजीव चित्रण किया है जो की बहुत ही मनोहारी है।



5.3 कठिन शब्दों के अर्थ

• सुनई - एक पौधा जिसकी छाल से रस्सी बनाई जाती है।
• किंकिणी - करधनी
• वृन्त - डंठल
• मुकुलित - अधखिला
• अँवली - छोटा आंवला
• सरपत - तिनके
• सुरखाब -चक्रवाक पक्षी
• हिम-आतप - सर्दी की धूप
• मरकत - पन्ना नामक रत्न
• हरना - आकर्षित करना

5.4कविता का विवरण
फैली खेतों में दूर तलक,
मखमल की कोमल हरियाली,
लिपटी जिससे रवि की किरणें
चांदी की सी उजली जाली।
तिनके के हरे हरे तन पर
हिल हरित रुधिर है रहा झलक,
श्यामल भूतल पर झुका हुआ
नभ का चिर निर्मल नील फलक।

इस कविता में गाँव के खेतों के सौंदर्य का चित्रण हुआ है। यदि आप गाँव में नहीं भी रहते हों तब भी आपने बसों या रेल में सफर करते समय गाँव की नैसर्गिक सुंदरता को जरूर निहारा होगा। दूर दूर तक ऐसा लगता है जैसे हरे रंग की मखमल की चादर बिछी हुई हो और उसपर जब सूरज की किरणें चमकती हैं तो लगता है जैसे किसी ने चांदी का जाल बिछा दिया हो। घास के हरे तन पर लगता है हरे वस्त्र हवा में हिल रहे हों। जब आप दूर क्षितिज पर देखेंगे तो लगेगा जैसे सांवली सी धरती पर निर्मल नीला आकाश अपने पलक बिछा रहा हो।
रोमांचित सी लगती वसुधा
आई जौ गेहूं में बाली,
अरहर सनई की सोने की
किंकिनियाँ हैं शोभाशाली।
उड़ती भीनी तैलाक्त गंध
फूली सरसों पीली पीली,
लो, हरित धरा से झाँक रही
नीलम की कली, तीसी नीली।
जौ और गेहूं में बालियाँ आ जाने से धरती खुशी से रोमांचित लग रही है। ये बालियाँ धरती की दंतपंक्तियों की तरह लग रही है। उस रोमांच की शोभा अरहर और सन वसुधा की करघनी बनकर बढ़ा रही हैं। सरसों के पीले फूल अपना तैलीय सुगंध बिखेर रहे हैं। साथ में तीसी के नीले फूल मानों नीलम पत्थर के नगीने की तरह दिख रहे हैं।
रंग रंग के फूलों में रिलमिल
हंस रहीं सखियाँ मटर खड़ी,
मखमली पेटियों सी लटकी
छीमियाँ, छिपाए बीज लड़ी।
फिरती है रंग रंग की तितली
रंग रंग के फूलों पर सुंदर,
फूले फिरते ही फूल स्वयं
उड़ उड़ वृंतों से वृंतों पर।
मटर के पौधे ऐसे लग रहे हैं जैसे सखियाँ मखमल की पेटियों में बीज छिपा कर खड़ी होकर हंस रही हैं। रंग बिरंगी तितलियाँ रंगीले फूलों पर उड़ रही हैं और हवा के झोंके से जब फूल एक डाली से दूसरी डाली को छूते हैं तो लगता है वे खुशी से फूले नहीं समा रहे हैं। समूचे तौर पर देखा जाए तो रंगों की छटा बिखरी हुई है।
अब रजत स्वर्ण मंजरियों से
लद गई आम्र तरु की डाली
झर रहे ढ़ाक, पीपल के दल
हो उठी कोकिला मतवाली।
महके कटहल, मुकुलित जामुन
जंगल में झरबेरी झूली,
फूले आड़ू, नीम्बू, दारिम
आलू, गोभी, बैगन, मूली।
आम के पेड़ की डाली चांदी और सोने की मंजरियों से लद गये हैं। आम के बौर की खुशबू आप पर नशे जैसा असर कर सकती है। पीपल के पत्ते झरने शुरु हो गये हैं और कोयल वसंत ऋतु की मादकता में मतवाली हो गई है। कटहल के पेड़ों से और अधखिले जामुन के फूलों से माहौल महकने लगा है। झरबेरी की झाड़ियाँ भी फूलों के वजन से लदकर झूलने लगी हैं। साथ में अन्य पौधों के फूल पूरी तस्वीर को मूर्त रूप दे रहे हैं।
पीले मीठे अमरूदों में
अब लाल लाल चित्तियाँ पड़ीं
पक गये सुनहरे मधुर बेर
अंवली से तरु की डाल जड़ी
लहलह पालक, महमह धनिया
लौकी औ सेम फलीं फैलीं।
मखमली टमाटर हुए लाल
मिरचों की बड़ी हरी थैली।
अमरूद इतने पक गये हैं कि उनपर लाल लाल निशान पड़ गये हैं। बेर पक गये हैं और आंवले से पेड़ की डाल ऐसे लगती है जैसे उनपर सितारे जड़ दिये गये हों। लौकी और सेम पूरे जमीन पर उधर उधर फैल गई है। टमाटर मखमल की तरह लाल हो गये हैं। मिर्च के पौधे किसी हरी भरी थैली की तरह लग रहे हैं।

बालू के सांपों से अंकित
गंगा की सतरंगी रेती
सुंदर लगती सरपट छाई
तट पर तरबूजों की खेती
अंगुली की कंघी से बगुले
कलगी संवारते हैं कोई
तिरते जल में सुरखाब, पुलिन पर
मगरौठी रहती है सोई।
गंगा के रेतीले किनारों पर बालू में लंबी लंबी लकीरे बनी हुई हैं। वे लकीरें ऐसा प्रतीत होती हैं जैसे कई सांप सोये हुए हों। वहाँ पर सरपट बिछी हुई तरबूज की खेती बड़ी सुंदर लग रही है। पास में कोई बगुला अपनी अंगुली से अपनी कलगी में कंघी कर रहा है। पानी में सुरखाब तैर रहे हैं और किनारे पर मगर अलसाया सा सोया हुआ है।
हंसमुख हरियाली हिम आतप
सुख से अलसाए से सोये,
भीगी अंधियाली में निशि की
तारक स्वप्नों में से खोये।
मरकत डिब्बे सा खुला ग्राम
जिस पर नीलम नभ आच्छादन
निरुपम हिमांत में स्निग्ध शांत
निज शोभा से हरता जन मन।
जाड़े की धूप से हरियाली अलसाकर ऐसे सोई है जैसे रात के अंधेरे में तारों के सपने देख रही हो। जाड़े के मौसम का अंत आ गया है और वसंत की शुरुआत है। ऐसे में नीले आसमान के नीचे गाँव ऐसे लग रहा है जैसे जवाहरातों का डब्बा खुला पड़ा हो। ये जवाहर अपनी शोभा से लोगों के मन को हर ले रहा है।

5.5 प्रश्न अभ्यास 

1. कवि ने गाँव को 'हरता जन मन' क्यों कहा है ?

उत्तर

कवि ने गाँव को 'हरता जन मन' इसलिए कहा है क्योंकि उसकी शोभा अनुपम है। चारों तरफ़ हरियाली के कारण धरती प्रसन्न है। गाँव का प्राकृतिक सौंदर्य सभी के मन को छूता है।

2. कविता में किस मौसम के सौंदर्य का वर्णन है ?

उत्तर

कविता में वसंत ऋतु के सौंदर्य का वर्णन है। इसी ऋतु में सरसों के पीले फूल खिलते हैं और चारो ओर हरियाली होती है।

3. गाँव को 'मरकत डिब्बे सा खुला' क्यों कहा गया है ?

उत्तर

'मरकत' 'पन्ना' नामक रत्न को कहते हैं। जिसका रंग हरा होता है। मरकत के खुले डिब्बे से सब कुछ साफ़-साफ़ दिखता है। मरकत के हरे रंग की तुलना गाँव की हरियाली से की गई है। गाँव का वातावरण भी मरकत के खुले डिब्बे के समान हरा भरा तथा खुला-खुला सा लगता है। इसलिए गाँव को 'मरकत डिब्बे सा खुला' कहा गया है।

4. अरहर और सनई के खेत कवि को कैसे दिखाई देते हैं ?

उत्तर

अरहर और सनई के खेत कवि को सोने की किंकणियो के सामान दिखाई दे रहे हैं। 

5.भाव स्पष्ट कीजिए -
(क) बालू के साँपों से अंकित
गंगा की सतरंगी रेती
(ख) हँसमुख हरियाली हिम-आतप
सुख से अलसाए-से सोए


उत्तर 

(क) प्रस्तुत पंक्तियों में गंगा नदी के तट वाली ज़मीन को सतरंगी कहा गया है। रेत पर टेढ़ी-मेढ़ी रेखाएँ हैं, जो सूरज की किरणों के प्रभाव से चमकने लगती हैं। ये रेखाएँ टेढ़ी चाल चलने वाले साँपों के समान प्रतीत होती हैं।
(ख) इन पंक्तियों में गाँव की हरियाली का वर्णन प्रस्तुत किया गया है। सूरज के प्रकाश में जगमगाती हुई हँसमुख सी प्रतीत होती है। सर्दी की धूप भी खिली-खिली है ऐसे में लगता है जैसे दोनों आलस्य से भरकर सोए हुए हों।

पृष्ठ संख्या: 116

6. निम्न पंक्तियों में कौन-सा अलंकार है ?
तिनकों के हरे हरे तन पर
हिल हरित रुधिर है रहा झलक

उत्तर

हरे हरे - पुनरुक्ति अलंकार है।
हिल हरित - अनुप्रास अलंकार है।
तिनकों के तन पर - मानवीकरण अलंकार है।

7. इस कविता में जिस गाँव का चित्रण हुआ है वह भारत के किस भू-भाग पर स्थित है ?

उत्तर

इस कविता में उत्तरी भारत के गाँव का चित्रण हुआ है। उत्तरी भारत, भारत के खेती प्रधान राज्यों में प्रमुख है।

रचना और अभिव्यक्ति

8. भाव और भाषा की दृष्टि से आपको यह कविता कैसी लगी ? उसका वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।

उत्तर

प्रस्तुत कविता भाव और भाषा दोनों की ही दृष्टि से अत्यंत सहज और आकर्षक है। प्रस्तुत कविता में प्रकृति का लुभावना और सुन्दर वर्णन हुआ है। कवि ने प्रकृति का मानवीकरण किया है।
कविता की भाषा भी अत्यंत सरल, मधुर तथा प्रवाहमयी है। अलंकारों का प्रयोग करके कविता के सौंदर्य में और वृद्धि हुई है।

Comments

Post a Comment

Popular posts from this blog

कैदी और कोकिला

अलंकार